TL;DR (संक्षेप में)
भारतीय त्योहारों में पारंपरिक गीत और संगीत आजकल बॉलीवुड के बड़े आवाजों में दबते जा रहे हैं। इससे युवा पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक धरोहर से कटती जा रही है। हमें त्योहारों की असली मिठास को फिर से जगाना होगा — पारंपरिक तरीके से मनाकर अगली पीढ़ी को भी प्रेरित करना होगा।
नमस्कार, परिवर्तनशील भारतीयों!
त्योहारों की तैयारी करते समय, इसके पीछे की असली भावना को समझना उतना ही जरूरी है। चाहे वह गणेशोत्सव हो, छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती हो, राम नवमी हो या कोई अन्य त्योहार — इन सभी का असली सार खुशी और सांस्कृतिक महत्व में है।
लेकिन हाल के दिनों में त्योहारों में गाने और संगीत का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। पहले त्योहारों में पारंपरिक भजन, भारूड और लोकसंगीत का चलन था — जो त्योहार की भावना से मेल खाता था।
आजकल, जैसे ही त्योहार आता है, बॉलीवुड के गाने धूमधाम से बजते हैं, और इस दौरान हमारी असली संस्कृति कहीं खो जाती है।
त्योहारों का मतलब बारात नहीं – यह एक सार्वजनिक उत्सव है
सार्वजनिक सड़कों पर बड़े स्पीकर लगाकर फिल्मी गानों पर नाचना त्योहार मनाने का तरीका नहीं है। यह हमारी शादी की बारात नहीं है, यह हमारे संस्कृति की झलक है।
यह प्रवृत्ति क्यों हानिकारक है?
बड़ी पीढ़ी को पुराने और आज के त्योहारों में फर्क समझ में आता है। लेकिन अगर छोटी पीढ़ी को यही ‘नया सामान्य’ लगता है, तो उनके मन में पारंपरिक त्योहारों का महत्व कभी नहीं विकसित होगा।
पहले त्योहारों में जो भजन बजते थे, भारूड और लोकगीत सुनने को मिलते थे — अब कोई भी इनका महत्व नहीं समझता। और फिर हम खुद से सवाल करें — हम अपनी अगली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं?
हम बदलाव ला सकते हैं – और लाना चाहिए!
परंपरा के अनुकूल संगीत चुनें
गणपति स्तोत्र, होली के ढोल, दिवाली के अभंग, दक्षिण भारतीय कर्नाटकी शास्त्रीय रचनाएँ — ये कितने सुंदर विकल्प हैं! यही असली संगीत है हमारा।
खुद उदाहरण बनें
अपने घर, सोसायटी और मित्रों के बीच सही गाने बजाएं। त्योहारों में शोर-शराबे के बजाय शांत और सुसंस्कृत वातावरण बनाएं। लोग आपसे प्रेरित होंगे।
युवाओं में जागरूकता फैलाएं
उन्हें बताएं कि ये त्योहार उनकी संस्कृति का हिस्सा हैं। बॉलीवुड नहीं, हमारी मिट्टी, हमारा सूर और हमारी पहचान ही त्योहारों का असली आत्मा है।
आइए, एक साथ मिलकर – और फिर से हासिल करें अपने त्योहारों की चमक!
हमारे सामूहिक प्रयासों से त्योहारों को फिर से पारंपरिक सम्मान मिलेगा। हमारी संस्कृति, हमारा गर्व और हमारी आने वाली पीढ़ी — उन्हें सही दिशा मिलेगी।
चलो, बदलाव लाते हैं – और असली अर्थों में “बेहतर भारत” बनाते हैं!
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